महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविधालय छतरपुर (मध्यप्रदेश)
B. A. (Second Year) Examination, 2020-21
(For Regular Students)
Paper : First
GEOGRAPHY
1. सही उत्तर का चयन कीजिए
(i) वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस का प्रतिशत है
(a) 19.00
(b) 20.00
(c) 20.96 ✅
(d) 20:32
(ii) निम्नांकित में से कौन-सी अश्व अक्षांश कहलाती है?
(a) 10°-150
(b) 30°-35° ✅
(c) 40°-50°
(d) 70°-80°
(iii) आर्द्रता की इकाई क्या है?
(a) इंच
(b) मिलीमीटर
(c) सेन्टीमीटर
(d) ग्रेन✅
(iv) सबसे बड़ा महासागर कौन-सा है ?
(a) अन्ध महासागर
(b) हिन्द महासागर
(c) प्रशान्त महासागर✅
(d) अरब सागर
(v) भूमध्य रेखा पर जल का औसत तापमान कितना पाया जाता है?
(a) 20°-C
(b) 35°-C
(c) 19°-C
(d) 27°-C✅
Q. 2. मौसम और जलवायु में क्या अन्तर है?
उत्तर :- मौसम और जलवायु निम्नलिखित अंतर हैं -
1. किसी स्थान का मौसम उस स्थान के तापमान, आर्द्रता, पवन दिशा और प्रवाह, वायुदाब, वर्षा आदि के तात्कालिक प्रभाव को कहते हैं जबकि किसी विस्तृत क्षेत्र के लगभग तीस वर्षों के औसत मौसम को उस स्थान की जलवायु कहते हैं।
2. किसी स्थान का मौसम समय के साथ परिवर्तनीय होता है जबकि किसी स्थान की जलवायु लगभग स्थायी होती है।
3. किसी स्थान के मौसम पर वहां के तापमान, आर्द्रता, वायुदाब, बादलों की स्थिति, पवन आदि का प्रभाव पड़ता है जबकि किसी स्थान की जलवायु पर इन सब चीज़ों के साथ साथ अक्षांश, सौरप्रकाश, महासागरीय धाराएं, वायुदाब पट्टियां, तूफान, ऊंचाई आदि कई अन्य चीज़ों का भी प्रभाव पड़ता है।
4. मौसम गतिशील होता है जबकि जलवायु लगभग स्थिर होता है। यह वर्षों तक स्थिर बना रहता है।
5. किसी स्थान का मौसम बारिश का हो सकता है गर्मी या ठंडी या तूफान का हो सकता है पर किसी स्थान की जलवायु स्थाई रूप से नम, ठंडा या गर्म हो सकता है।
Q. 3. स्थानीय पवनें क्या हैं ?
उत्तर :-
स्थानीय धरातलीय बनावट, तापमान एवं वायुदाब की विशिष्ट स्थिति के कारण स्भावतः प्रचलित पवनों के विपरीत प्रवाहित होनें वाली पवनें "स्थानीय पवनों" के रूप में जानी जाती हैं। इनका प्रभाव अपेक्षाक्रत छोटे छेत्रों पर पडता हैं। ये क्षोभमण्डल की सबसे नीचे की परतों तक सीमित रहती हैं।
Q. 4.किसी एक वर्षा के प्रकार का विवरण दीजिए।
उत्तर :- वर्षा मुख्यत: तीन प्रकार की होती हैं-
(1) संवहनीय वर्षा, (2) चक्रवातीय वर्षा, (3) पर्वतीय वर्षा
1.संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall)-धरातल के असाधारण रूप से गरम हो जाने पर धरातल से लगी हुई हवा गरम हो जाती है। गरम होकर हवा फैलती है और आसपास की ठण्डी तथा भारी हवा उसे ऊपर उठने को बाध्य कर देती है। साधारणत: यह हवा उसी सीमा तक ऊपर उठती है जहाँ तक कि इसका तापमान ऊपर उठने के कारण कम होकर आसपास की हवा के तापमान के अनुरूप नहीं हो जाता। जब यह अपने तापमान और घनत्व वाली वायु के पास पहुँच जाती है तो यह ऊँची नहीं उठती किन्तु यदि वायु के इस सीमा के पहुँचने के पूर्व ही संघनन प्रारम्भ हो जाता है तो संघनन के कारण छोड़े गये गुप्त ताप (Latent Heat) के द्वारा ऊपर पहुँच जाती है। इस प्रकार ग्रीष्मकालीन दोपहर में जब धरातल भीषण गर्मी से उत्तप्त हो जाता है तो वायुमण्डल में बड़ी मात्रा में संवहन धाराएँ उठने लगती हैं। ऊपर उठकर हवा ठण्डी होती है और उसमें संघनन प्रारम्भ हो जाता है जिससे आकाश गहरे कपासी-वर्षा मेघों से घिर जाता है और फिर घनघोर वर्षा होती है। कभी-कभी ये बादल 10 हजार फुट की ऊँचाई तक आकाश में पाये जाते हैं। संवहनीय वर्षा का सम्बन्ध सदा ग्रीष्म ऋतु और दिन के उष्णतम समय (Warm House) से है। इस कारण संवहनीय वर्षा उष्ण तथा शीतोष्ण खण्डों के भीतरी भागों में केवल ग्रीष्मऋतु में ही होती है। ग्रीष्म में होने वाली सभी वर्षा में कुछ अंश संवहनीय वर्षा का अवश्य रहता है।
चूँकि उष्ण और आर्द्र हवा संवहनीय तरंगों के रूप में ऊपर उठती है अत: शीघ्र ठण्डी हो जाती है और उससे जो वर्षा होती है, वह भारी बौछार के रूप में होती है। किन्तु यह वर्षा अधिक समय तक नहीं ठहरती है। धरातल पर जोर से गिरने के कारण यह वर्षा फसलों के लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध होती में है। वर्षा का अधिकतर जल भूमि में प्रवेश करने की चित्र - संवहनीय वर्षा अपेक्षा धरातल पर बह जाता है। जोते हुए खेतों के लिए तो ये काल स्वरूप ही सिद्ध होती है, क्योंकि इससे खेतों की उपजाऊ मिट्टी बहकर नष्ट हो जाती है। विषुवतरेखीय भागों में कई जगह इसी प्रकार भूमि का अपरदन (Soil Erosion) होता है। इसके विपरीत मध्य और उच्च अक्षांशों में जहाँ ग्रीष्मऋतु में फसलें उगती हुई होती हैं वहाँ संवहनीय वर्षा बड़ी लाभप्रद होती है।
Q.5. महासागरीय निक्षेप क्या है? अथवा
उत्तर :- वे सभी पदार्थ जो अनन्तकाल से सागर तल पर जमा होते रहते हैं, महासागरीय निक्षेप कहलाते हैं। इनमें से कुछ पदार्थ स्थल भाग से नदियों, हिमनदियों, पवन आदि के द्वारा सागर तल पर पहुँचाए जाते हैं तथा कुछ सागरीय जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के अवशेष से प्राप्त होते हैं। इनके अतिरिक्त ज्वालामुखी उद्गार से निकले राख-कीचड़ तथा लावा आदि भी सागर तल पर जमा होते हैं।
Q.6. ज्वार-भाटा किसे कहते हैं ? अथवा
उत्तर :- ज्वार-भाटा से आशय ज्वार-भाटा समुद्र की अस्थिर गतियों में से एक है। इस गति के कारण सागर जल सागर तल से कभी ऊपर और कभी नीचे होता रहता है। इस क्रिया को ज्वार-भाटा कहा जाता है। मरे महोदय के अनुसार “सूर्य एवं चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण समुद्र जल के नियमित रूप से ऊपर उठने तथा नीचे गिरने की क्रिया को ज्वार-भाटा कहते हैं।" इस प्रकार समुद्र जल के ऊपर उठने अथवा आगे बढ़ने को ज्वार (Tide) तथा नीचे गिरने अथवा पीछे लौटने को भाटा (Ebb) कहा जाता है।
Q.7. वायुमण्डल की विभिन्न परतें कौन-सी हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर :- वायुमण्डल की परतें या स्तरीकरण या संस्तर पृथ्वी तल से वायुमण्डलीय बाह्य सीमा तक वायुमण्डल में अनेक परतें पायी जाती हैं। इन परतों का निर्धारण वायुदाब, तापमान एवं अन्य लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इस दृष्टि से वायुमण्डल को निम्नलिखित छ: भागों में विभाजित किया जाता है-
1. परिवर्तन मण्डल या क्षोभ मण्डल (Troposphere)- यह वायुमण्डल का सबसे नीचे का भाग है। पृथ्वी के धरातल से इसकी औसत ऊँचाई 7% मील है। ध्रुवों की अपेक्षा विषुवत रेखा पर इसकी ऊँचाई अधिक है। विषुवत रेखा पर यह 16 किमी. ऊँचा है। परन्तु ध्रुवों पर इसकी ऊँचाई 6 किमी. ही है। वायुमण्डल के इसी भाग में हम रहते हैं, इसीलिए इसका अध्ययन हमारे लिए महत्वपूर्ण है। वायुमण्डल की अधिकांश स्थूलता इसी भाग में है। जल वाष्प, धूलकण और भारी गैसें इसी भाग में अधिक पायी जाती हैं। परिवर्तन मण्डल की ऊपरी सीमा पर वायुदाब भी धरातल की अपेक्षा 1/4 रह जाता है।
वायुमण्डल के इस भाग में वायु कभी शान्त नहीं रहती है। इसमें निरन्तर हवाएँ और संवहनीय धाराएँ चला करती हैं जो ताप और आर्द्रता को काफी ऊँचाई तक वितरित करती रहती है। इस भाग में ऊँचाई के अनुसार बराबर ताप गिरता जाता है। प्रति 300 फुट की ऊँचाई पर 9° फा. तापमान कम होता जाता है। यह भाग विकिरण (radiation), संचालन (conduction) और संवहन (convection) द्वारा गरम और ठण्डा होता है।
इस भाग में संवहनीय धाराएँ अधिक चलती हैं। अत: इस भाग को संवहनीय प्रदेश (convection zone) या उद्वेलित संवहन स्तर (turbulent convection stratum) भी कहते हैं।
यह भाग सभी प्रकार की मौसमी घटनाओं (weather phenomena) का स्थल है। तापमान के दैनिक और मौसमी परिवर्तनों का अध्ययन इसी भाग में किया जाता है। हमारे रेडियों में गड़गड़ाहट की आवाज उत्पन्न करके सुरीले गानों में विध्न डालने वाले अन्तरिक्ष विक्षोभ भी इसी में उत्पन्न होते हैं। आँधी-तूफान, घन-गर्जन और विद्युत प्रकाश आदि का स्थान भी यही है। इसके आगे कोई हलचलें दिखायी नहीं देती हैं।
2. मध्य स्तर मण्डल (Tropopause)- वायुमण्डल का वह भाग है, जहाँ परिवर्तन मण्डल की पेटी समाप्त होती है और समतल मण्डल की नयी पेटी प्रारम्भ होती है। अत: वायुमण्डल के इस भाग में परिवर्तन मण्डल और समताप मण्डल दोनों के गुण विद्यमान हैं। वायुमण्डल के इस भाग में चौड़ाई लगभग 19 किमी. है। इस भाग में परिवर्तन मण्डल की हवाएँ तथा संवहनीय धाराएँ चलना बन्द हो जाती हैं। इस पेटी के बाद समताप मण्डल की पेटी प्रारम्भ हो जाती है।
3. समतापमण्डल (Stratosphere)- मध्य स्तर के ऊपर स्थिर वायुमण्डल के भाग को समताप मण्डल कहते हैं। वायुमण्डल के इस भाग में तापमान लगभग एक समान रहते हैं। अप्रैल 1888 में तिसरा डी बोर्ड ने इस बात का पता लगाया कि इस भाग में विकिरण द्वारा प्राप्त गर्मी प्रस्तुत विकिरण के समान होती है। इस प्रकार इस कटिबन्ध में तापमान के अपरिवर्तित रहने के कारण ही इसे समताप मण्डल (isothermal zone) कहा जाता है।
कुछ समय पूर्व समताप मण्डल की ऊँचाई 13 से 32 किमी. मानी जाती थी, किन्तु स्पुतनिकों द्वारा की गयी खोजों के द्वारा अब इसकी ऊँचाई 16 से 80 किमी. तक ऑकी गयी है। समताप मण्डल की ऊँचाई अक्षांश तथा ऋतुओं के अनुसार बदलती रहती है। ध्रुवों की अपेक्षा विषुवत रेखा पर इसकी ऊँचाई अधिक है। इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु में इसकी ऊँचाई जाड़े की अपेक्षा अधिक होती है। यह भाग पूर्णत: संवहन रहित (non-connection) होता है। वायु इस मण्डल की अन्य विशेषताएँ हैं। वायुमण्डल के इस कटिबन्ध में आँधी, तूफान, हिम एवं घन-गर्जन नहीं होता है। वायुदाब धरातल की अपेक्षा का ही रहता है। जलवाष्प और धूल कण बहुत ही कम होते हैं। संवहनीय धाराओं तथा बादलों का पूर्ण अभाव पाया जाता है।
4.ओजोन मण्डल (Ozonosphere)- समताप मण्डल के ऊपर जिस नवीन भाग की खोज हुई है उसे ओजोन मण्डल (Ozonosphere) कहते हैं। कुछ विद्वान इसे समताप मण्डल का ऊपरी हिस्सा ही मानते हैं। वायुमण्डल की यह भाग 32 से 80 किमी. की ऊँचाई तक फैला हुआ है। इस भाग में ओजोन गैस की प्रधानता रहती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली अत्यन्त गरम पराबैंगनी किरणों (Ultra-violet-rays) को सोख लेती है। इसका पृथ्वी की जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
Q.8. वायुराशियाँ क्या हैं? उनका वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :- वायुराशियाँ वायुमण्डल का ही एक अंग होती हैं। वस्तुत: वायु की एक ऐसी विस्तृत और सघन राशि जो तापमान, आर्द्रता तथा अन्य गुणों की दृष्टि से एक समान हों, वायुराशि कहलाती है। प्राय: वायुराशियों का विस्तार हजारों और कभी-कभी लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में होता है। किसी प्रदेश की जलवायु पर इनका गहरा प्रभाव होता है। वातारों के निर्माण में इनका महत्वपूर्ण हाथ रहता है। वायुराशियों की सीमाएँ वातारों द्वारा बनती हैं। इनकी उत्पत्ति विशेष उद्गम क्षेत्रों में होती है। यदि कोई वायुराशि लम्बे समय तक एक क्षेत्र में स्थिर रहती है तो उसमें उस क्षेत्र के विशिष्ट गुण आ जाते हैं। जब कोई वायुराशि अपना मूल स्थान छोड़कर अन्य क्षेत्रों की ओर चलती है तो उसके गुणों में परिवर्तन हो जाता है।
बर्गरॉन ने उत्पत्ति क्षेत्र की मौसमी दशाओं तथा मार्ग में होने वाले ऊष्मागतिक तथा स्वतनी को ध्यान में रखते हए वाय राशियों का निम्नांकित वर्गीकरण प्रस्तुत किया है-
(i) भौगोलिक वर्गीकरण- यह वर्गीकरण वाय राशियों के उत्पत्ति क्षेत्रों को आधार मानकर किया गया है।
1. उष्ण कटिबन्धीय वायुराशियों की उत्पत्ति उष्ण कटिबन्धीय भागों (भू-मध्यरेखीय
प्रदेशों सहित) में होती है। 2. ध्रुवीय वायुराशियों की उत्पत्ति ध्रुवीय प्रदेशों एवं आर्कटिक क्षेत्रों में होती है। उपरोक्त प्रकारों को महाद्वीपीय तथा महासागरीय भागों में पनर्विभाजित कर दिया गया है।
(ii) ऊष्मागतिक वर्गीकरण- जब वायु धरातलीय तापक्रम की अपेक्षा अधिक गर्म होती है तो उसे गर्म वायु राशि तथा जब वायु राशि धरातलीय तापक्रम की अपेक्षा शीतल होती है, तो उसे ठण्डी या शीतल वायु राशि कहा जाता है।
1. गर्म वायु राशियाँ- ये दो प्रकार की होती हैं-
(i) महाद्वीपीय गर्म वायु राशि लक्षण- उत्पत्ति क्षेत्र पर इनके निम्नांकित लक्षण पाये जाते हैं
(क) वायु अत्यन्त ऊष्ण तथा अस्थिर होती है। (ख) वर्षा नहीं हो पाती है।
दूरस्थ भाग पर निम्नांकित विशेषताएँ होती हैं(ग) निचले भाग में आर्द्रता बढ़ जाती है। (घ) शरदकाल में यह शुष्क, गर्म तथा स्थिर हो जाती है।
उत्पत्ति क्षेत्र- उत्तरी अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका के शुष्क पश्चिमी भाग एवं कभी-कभी आस्ट्रेलिया एवं दक्षिण अफ्रीका में भी गर्म वायु राशियों का उद्भव होता है।
(ii) महासागरीय गर्म वायु राशियाँ लक्षण- उत्पत्ति क्षेत्र पर निम्नांकित लक्षण पाये जाते हैं
(क) तापक्रम ऊँचा रहता है।
(ख) सामान्य ताप पत्तन दर अधिक होती है।
(ग) आर्द्रता धारण क्षमता अधिक होती है।
(घ) वायु में स्थिरता होती है।
दूरस्थ भाग पर निम्न लक्षण होते हैं-
(ङ) सामान्य ताप पत्तन दर में ह्रास होता है।
(च) कभी-कभी ताप का प्रतिलोमन होने लगता है।
(छ) स्थिरता बढ़ने लगती है।
(ज) वायु के नीचे से शीतल होने के कारण आपेक्षित आर्द्रता बढ़ती जाती हाज संघनन शीघ्र होता है और कुहरा, धुन्ध तथा स्तरीय मेघ बनते हैं। हल्की फुहार से लेकर वर्षा तक हो जाती है।
(झ) वायु राशि के निचले भाग में दृश्यता कम हो जाती है।
2. ठण्डी या शीतल वाय राशियाँ- उत्पत्ति क्षेत्रों में इन वायु राशियों में निम्नांकित लक्षण पाए जाते हैं-
(1) धरातल की अपेक्षा इस वायु राशि का तापक्रम कम होता है।
(ii) विशिष्ट आर्द्रता अत्यन्त कम होती है।
(iii) सामान्य ताप पत्तन दर कम होती है।
(iv) स्थिरता बढ़ती जाती है।
दूरस्थ क्षेत्रों में इनके निम्नांकित लक्षण होते हैं-
(v) जहाँ ये वायु राशियाँ पहुँचती हैं वहाँ का तापक्रम कम कर देती हैं।
(vi) वायु नीचे से गर्म होती है, जिससे सामान्य ताप पत्तन दर बढ़ जाती है।
Q.9. चक्रवात क्या है? शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- चक्रवात से आशय जब किसी स्थान पर अचानक निम्न वायुदाब बन जाता है तब वहाँ की वाय ऊपर उठने लगती है। इसके साथ ही आसपास की अधिक वायुदाब की वायु चारों ओर से उस स्थान पर झपटती है। इस प्रकार उनकी आकृति गोलाकार रूप धारण कर लेती है। इसे चक्रवात कहते हैं।
चक्रवात की सामान्य विशेषताएँ-
सामान्यतया चक्रवात की निम्न विशेषताएँ होती हैं
1. चक्रवातों की आकृति प्राय: गोलाकार, अण्डाकार अथवा वी आकार के समान होती है।
2. केन्द्र में सबसे कम वायु दबाव होता है तथा बाहर की ओर वायु दबाव बढ़ता है।
3. चक्रवातों में वायु ऊपर उठती है तथा वर्षा करती है।
4. स्थायी हवाओं में विशेष रूप से व्यापारिक हवाओं तथा पछुआ हवाओं में चक्रवात भली भांति विकसित होते हैं और प्रायः अस्थिर होते हैं।
चक्रवातों को उनकी उत्पत्ति स्थान के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है-
(i) शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (ii) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात।
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
आकार एवं विस्तार- ये चक्रवात 30 से 65 डिग्री अक्षांशों के मध्य पाये जाते हैं। ये प्रायः गोलाकार, अई गोलाकार या अण्डाकार होते हैं। कभी-कभी इनका आकार अंग्रेजी के V अक्षर के समान भी होता है। इनके विस्तार में बहुत भिन्नता मिलती है। एक आदर्श शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात का लघु व्यास लगभग 1000 किमी. एवं दीर्घ व्यास 2000 किमी. लम्बा होता है। कभी-कभी ये 10 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत होते हैं। प्रायः ये चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर भ्रमण करते हैं, कभी-कभी इनकी दिशा भिन्न हो जाती है। इनकी औसत गति ग्रीष्मकाल में 32 किमी. प्रति घण्टा तथा शीतकाल में 48 किमी. प्रति घण्टा होती है। कभी-कभी इनका वेग तूफानी भी होता है।
वायुदाब एवं पवन व्यवस्था- शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के केन्द्र तथा बाह्य दाब में 10 से 36 मिलीबार का अन्तर पाया जाता है। केन्द्र में कम दाब होने के कारण बाहर (परिधि) से भीतर (केन्द्र) की ओर पवनें चलती हैं। कोरिऑलिस बल तथा रगड़ के कारण ये पवने समदाब रेखाओं को 20 से 40 डिग्री के कोण पर काटती हैं। इस प्रकार इन चक्रवातों में पवनों की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में वामवर्त अर्थात् घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त अर्थात् घड़ी की सुइयों की अनुकूल दिशा) होती है। इनमें अभिसारी वायु प्रणाली पायी जाती है। किन्तु पवनें केन्द्र में एकत्रित नहीं होतीं, वरन् ऊपर उठ जाती है। इसलिए केन्द्र में निम्न दाब कई-कई दिनों तक बना रहता है तथा चक्रवात जीवित उठ जाता है। इसलिए केन्द्र में निम्न दाब कई-कई दिनों तक बना रहता है तथा चक्रवात जीवित रहता है।
तापमान- दो भिन्न स्वभाव वाली वायु राशियों से उत्पन्न होने के कारण शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के भिन्न भागों में भिन्न तापमान पाये जाते हैं। चक्रवात के दक्षिणी भाग में गर्म वायु के कारण अधिक तापमान तथा उत्तर-पूर्व एवं उत्तर-पश्चिम में ठण्डी वायु के कारण कम तापमान रहते हैं। शीतकाल की अपेक्षा ग्रीष्मकाल में सामान्य से अधिक तापमान रहते हैं।
मार्ग एवं क्षेत्र- शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात मध्य एवं उच्च अक्षांशों में सक्रिय होते है। इनका मार्ग निर्दिष्ट नहीं होता। इनके चलने का मार्ग 'झंझापथ' कहलाता है, जिसे मेखलाओं में प्रदर्शित किया जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इनके दो प्रमुख क्षेत्र हैं
1. उत्तरी अमेरिका में उत्तरी पूर्वी तटीय क्षेत्र के निकट उत्पन्न होकर ये चक्रवात पछुआ हवाओं के साथ पूर्व की ओर अग्रसर होते हैं तथा यूरोप के मध्यवर्ती भाग तक पहुँचकर नष्ट हो जाते हैं।
2. एशिया के उत्तरी एवं पूर्वी तटीय क्षेत्र में उत्पन्न होकर उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ते हुए एल्युशियन द्वीपों एवं उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट तक पहुँचकर नष्ट हो जाते हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में ये अक्षांशों के समान्तर पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।
मौसम एवं वर्षा-चक्रवात के विभिन्न भागों में भिन्न प्रकार की वायु राशियाँ होने के कारण मौसम की भिन्नताएँ पायी जाती है। चक्रवात के आगमन पर किसी स्थान में अकस्मात् मौसम परिवर्तन होने लगता है। चक्रवात के गुजरने के साथ वातारों तथा वृतांशों के अनुरूप मौसम बदलता है। चक्रवात का आगमन होते ही वायुदाब बहुत गिर जाता है तथा पक्षाभ एवं पक्षाभ स्तरी मेघों के प्रतिबिम्ब के कारण सूर्य व चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामण्डल दिखने लगता है। चक्रवात के निकट आने के साथ मेघ नीचे आने लगते हैं तथा अधिक सघन व काले हो जाते हैं। ऊष्ण वाताग्र के आने पर वर्षा स्तरी मेघों में मन्द गति से किन्तु देर तक वर्षा होती रहती है। यदि वायु अधिक आर्द्र अस्थिर होती है तो वर्षा अधिक होती है। समस्त आकाश मेघाच्छादित रहता है। उष्ण वाताग्र के गुजर जाने पर उष्ण क्षेत्र का आगमन होता है तब मौसम में आकस्मिक परिवर्तन होते हैं। आकाश स्वच्छ तथा मेघ रहित हो जाता है। वायु का तापमान तेजी से बढ़ता है, वायुदाब कम होने लगता है तथा वायु की विशिष्ट आर्द्रता बढ़ जाती है। हल्की फुहार या बूंदा-बांदी सम्भव है। शीत वाताग्र के आने पर तापमान तेजी से गिरने लगता है। ठण्डी वायु गर्म वायु को धकेलने लगती है, वायु की दिशा में भी परिवर्तन होते है। मेघाच्छादन के साथ पुन: वर्षा होने लगती है जो मूसलाधार किन्तु अल्पकालिक होती है। बिजली की चमक व मेघ गर्जन के साथ तड़ित झंझा भी सक्रिय होती हैं। शीत वाताग्र के गुजरने पर शीत क्षेत्र का आगमन होता है। पुन: आकाश मेघरहित एवं स्वच्छ हो जाता है।
Q.10.महासागरीय निक्षेपों का वर्णन कीजिए।(अथवा )
उत्तर :-
वे सभी पदार्थ जो अनन्तकाल से सागर तल पर जमा होते रहते हैं, महासागरीय निक्षेप कहलाते हैं। इनमें से कुछ पदार्थ स्थल भाग से नदियों, हिमनदियों, पवन आदि के द्वारा सागर तल पर पहुँचाए जाते हैं तथा कुछ सागरीय जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के अवशेष से प्राप्त होते हैं। इनके अतिरिक्त ज्वालामुखी उद्गार से निकले राख-कीचड़ तथा लावा आदि भी सागर तल पर जमा होते हैं।
महासागरीय निक्षेपों का वर्गीकरण महासागरीय निक्षेप विभिन्न स्रोतों द्वारा सागर की तली पर सतत् रूप से जमा किये जाते हैं। महासागरीय निक्षेप के विभिन्न स्रोतों की प्रकृति के आधार पर महासागरीय निक्षेपों का वर्गीकरण किया जा सकता है।
इस सन्दर्भ में सर जॉन मुरे (Sir John Murray) ने सागरीय निक्षेपों को निम्न दो भागों में वर्गीकृत किया-
1.स्थलीय निक्षेप (Terrigeneous Deposits)- ये निक्षेप स्थल से समुद्री भागों में नदियों तथा वायु द्वारा जमा किये जाते हैं तथा इन स्थलीय निक्षेपों के साथ थोड़ी मात्रा में समुद्री जीव तथा वनस्पति के अवशेष मिलते हैं। ये निक्षेप प्रमुख रूप से महाद्वीपीय मग्नतट तथा महाद्वीप मग्नढाल पर पाये जाते हैं। रेत, बजरी, बालू के कण तथा कीचड़ प्रमुख स्थलीय निक्षेप हैं। ये निक्षेप मोटे कणों से निर्मित होते हैं।
2.पैलेजिक निक्षेप (Pelagic Deposits)- इस प्रकार के निक्षेप प्रमुख रूप से समद्री जीवों तथा वनस्पतियों के अवशेषों से निर्मित होते हैं। साथ ही समुद्री भागों में ज्वालामुखी उद्गार से प्राप्त राख भी हो सकती है। पैलेजिक निक्षेप महासागरीय तलों में गहराई पर मिलते हैं। ये निक्षेप बारीक कणों से निर्मित होते हैं।
जे.टी.जेनकिन्स (J.T.Jenkins) महोदय ने गहराई के आधार पर सागरीय निक्षेपों को तीन भागों में विभक्त किया है-
(i) तटीय निक्षेप- उच्च तथा निम्न ज्वारीय तल के बीच में ये निक्षेप मिलते हैं। इनमें. रेत, बजरी तथा पंक प्रमुख हैं। यहाँ स्थलीय निक्षेप मिलते हैं।
(ii) उथले सागर के निक्षेप- ये निक्षेप निम्न ज्वारीय तल से 100 फैदम की गहराई तक मिलते हैं। इनमें भी रेत, बजरी तथा पंक प्रमुख हैं। यहाँ भी सभी स्थलीय निक्षेप मिलते हैं।
महासागरीय निक्षेपों का सामान्य वर्गीकरण
समुद्री निक्षेपों के सामान्य वर्गीकरण के अनुसार महासागरीय निक्षेपों को निम्नांकित । दो विभागों में विभक्त किया गया है-
1.स्थलीय निक्षेप (Terrigenous Deposits)- सागर के तट के पास मोटे पदार्थों का निक्षेपण मिलता है जबकि तट से दूर सागर की ओर जाने पर निक्षेप के कणों का आकार क्रमश: छोटा होता चला जाता है। महाद्वीपीय निमग्न स्थल पर ये निक्षेप मिलते हैं।
स्थलीय निक्षेपों को दो उपविभागों में बाँटते हैं -
(i) छिछले जल का जमाव- ये जमाव समुद्र में 100 फैदम तक मिलते हैं। इनमें बजरी (कणों का आकार 2 से 256 मिमी. वाला), रेत (कणों का व्यास 1 मिमी. से 1/16 मिमी.), सिल्ट (कणों का व्यास 1/32 मिमी. से 1/256 मिमी.) तथा मृत्तिका (कणों का व्यास 1/512 से 1/8192 मिमी.) प्रमुख हैं।
(ii) अपेक्षाकृत गहरे जल के जमाव- ये जमाव 100 फैदम से 1,000 फैदम तक मिलते हैं तथा इनमें प्रमुख रूप से मृत्तिका तथा पंक (कीचड़) के निक्षेप मिलते हैं। पंक के कण मृत्तिका से भी छोटे होते हैं जिनका व्यास 1/8192 मिमी. से भी छोटा है। मूरे महोदय ने पंक को रंग के आधार पर तीन प्रकारों में विभक्त किया-
(a) नीला पंक (b) लाल पंक (c) हरा पंक
2. पेलैजिक निक्षेप या अगाध सागरस्थ जमाव (Pelagic Deposits)- 1000 फैदम से अधिक गहराई पर पेलैजिक निक्षेप प्रमुख रूप से मिलते हैं। सागरों के जीव, वनस्पतियों के अवशेष तथा अकार्बनिक तत्वों के निक्षेप पेलैजिक निक्षेप कहलाते हैं। अर्थात् इस जमाव का स्रोत स्वयं सागर है। इन पेलैजिक निक्षेपों में विभिन्न प्रकार के ऊज सम्मिलित हैं। अधिक गहरे समुद्रों की तली में समुद्री जीवों एवं वनस्पतियों के निक्षेप पंक के रूप में (कणों का व्यास 1/8192 मिमी.) मिलता है जिसे ऊज कहते हैं। चूना और सिलिका की मात्रा के आधार पर इन ऊज (Ooge) को दो उपविभागों में बाँटते हैं
(i) चूना प्रधान ऊज (Calcareous Ooze)- चूने की अधिक मात्रा इस प्रकार के ऊज (पंक) में होती है। सागरीय जीव द्वारा निर्माण के आधार पर चूना प्रधान ऊज को दो उपभागों में बाँटते हैं
(a) टेरोपोड ऊज (Teropod Ooze)- टेरोपोड जीव के अवशेषों से यह ऊज निर्मित होता है जिसमें चूने (कैल्शियम कॉर्बोनेट) का अंश 80 प्रतिशत पाया जाता है। यह ऊज सामान्यतया 800 फैदम से 1500 फैदम गहराई तक मिलता है। यह ऊज सागर में लगभग 10 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके जमाव प्रशान्त महासागर के पश्चिमी तथा पूर्वी भागों में, भूमध्यसागर के मध्यवर्ती भाग में तथा कनार द्वीप के निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मिलते हैं।
(b) ग्लोबिजेरिना ऊज (Globigerina Ooze)- ग्लोबिजेरिना जीव के अवशेषों से यह ऊज निर्मित होता है। इसमें चूने का अंश 64 प्रतिशत तथा लगभग 3 प्रतिशत ग्लाकोनाइट खनिज होता है। इस ऊज की उपस्थिति 2000 फैदम से 4000 फैदम के मध्य मिलती है। यह ऊज सागर की तली के सर्वाधिक क्षेत्रफल में विस्तृत है।
Q.11.अन्ध महासागर की धाराओं का वर्णन कीजिए।(अथवा)
उत्तर :- प्रचलित व्यापारिक पवन (Trade Wind), विषुवत रेखा (Equator) के उत्तर और दक्षिण में महासागर के धरातलीय जल को बहने के लिए प्रेरित करती है। इससे यहाँ का जल दो धाराओं के रूप में पश्चित की ओर बहता है। अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) की निम्नलिखित धाराएं (Currents) हैं :
1. उत्तरी विषुवत रेखीय धारा (Northern Equatorial Stream) - यह धारा अटलांटिक महासागर में । भूमध्यरेखा के उत्तर में उत्तरी पूर्वी व्यापारिक पवनों के द्वारा पैदा की जाती है, जिससे गर्म जल पूर्व पश्चिम की ओर जाता है। इस धारा को उत्तरी विषुवतरेखीय धारा कहते हैं। इस प्रकार से असन्तुलित हुए जल स्तर का संतुलन वापस लाने के उद्देश्य से एक वापसी धारा जिसे विरुद्ध विषुवतीय धारा कहते हैं, पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। पश्चिमी अफ्रीका के तट के सतीप इसे गिनी धारा कहा जाता है। कैरीबियन सागर में पश्चिमी द्वीप समूह के बीच यह धारा दो धाराओं में बँट जाती है जिसमें से एक उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ बहकर गल्फस्ट्रीम में मिल जाती है और दूसरी दक्षिण में मैक्सिको की खाड़ी में पहुँच जाती है।
2. फ्लोरिडा की धारा (Florida Stream)- यह उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा का आगे वाला भाग है जो मिसिसिपी नदी द्वारा प्रदत्त अतिरिक्त जल को लेकर युकाटन जल संधि द्वारा मैक्सिको की खाड़ी में घुसती है। इसके परिणामस्वरूप खाड़ी का जल स्तर अटलांटिक महासागर के जलस्तर की अपेक्षा कुछ ऊँचा हो जाता है। अतः खाड़ी से जल की धारा, फ्लोरिडा के मुहाने से होकर बाहर खुले महासगार में निकलती है, जहाँ अंटाईल्स की धारा इससे मिल जाती है। फ्लोरिडा अंतरीप से यह सम्मिलित धारा कहते हैं, जो एक गर्म धारा है।
3. गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream)- यह उष्ण जल धारा 20° उत्तरी अक्षांश के पास मैक्सिको की खाड़ी से उत्पन्न होकर उत्तर-पूर्व की ओर 700 उत्तरी अक्षांश तक पश्चिमी यूरोप के पश्चिमी तट तक प्रवाहित होती है। इसी धारा को उत्तर में उत्तरी अटलांटिक प्रवाह कहा जाता है, जो अटलांटिक महासागर के आर-पार पूर्वी की ओर बहती है।
4. नार्वे की धारा (Norwegian Stream) - जब उत्तरी अटलांटिक प्रवाह स्कैण्डेनेविया तट के सहारे बहती है, तब इसे नार्वे की धारा कहते हैं। यह ठण्डी जलधारा है जो स्कैण्डेनेविया तट से बेरेण्ट सागर होती हुई स्पिट्सवर्जन द्वीप में खत्म हो जाती है।
5. लैब्रोडोर की धारा (Lebrodor's Stream) - यह ठण्डी जलधारा है जो आर्कटिक महासागर से अटलांटिक महासागर में ग्रीनलैण्ड के पश्चिमी तट पर बेफिन की खाड़ी से निकलकर लैब्रोडोर के पठार के सहाते बहती है। लैब्रोडोर धारा कनाडा के पूर्वी तट पर बहती हुई कर्म गल्फस्ट्रीम से मिलती है। भिन्न तापमान वाली इन दो धाराओं के संगम से न्यूफाउंडलैंड के समीप विख्यात कोहरे का निर्माण होता है और यह संसार का सबसे महत्वपूर्ण मत्स्य आखेट क्षेत्र है।
6. पूर्वी ग्रीनलैण्ड की धारा (East Greenland Stream) - यह ठंडी जलधारा है जो आर्कटिक महासागर से डेनमार्क जलसन्धि के रास्ते ग्रीनलैण्ड के पूर्वी किनारे पर अटलांटिक महासगार में बहती है। पूर्वी तथा दक्षिणी तट के सहारे बहती हुई यह ठण्डी धारा उत्तरी अटलांटिक महासागरीय प्रवाह के उत्तरी किनारे से मिल जाती है। इसे पूर्वी आइसलैण्ड की धारा के नाम से भी जाना जाता है।
7. केनारी की धारा (Canary Stream)- यह एक ठंडी जल धारा है जो उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट के सहारे केपवर्ड के पास होकर दक्षिण की ओर बहती है। यह उत्तरी अटलांटिक प्रवाह की उपधारा है जो पश्चिमी यूरोपियन तट से टकराकर दक्षिणी की ओर उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा से मिल जाती है। अंत में यह उत्तरी विषुवतीय धारा में विलीन होकर उत्तरी अटलांटिक में धाराओं के चक्र को पूरा करती है।
8. दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (Southern Equatorial Stream) - इस धारा की उत्पत्ति दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों से होती है जो भूमध्य रेखा के समानान्तर पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।
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Bsc
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Hello